जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का प्रसार होता जा रहा है वैसे-वैसे साइबर अपराधी भी लोगों के साथ धोखाधड़ी करने के नए-नए तरीके आजमा रहे हैं। अब साइबर ठगों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी करने का एक ऐसा नया तरीका निजात किया है। जिसके बारे में सुनकर हर कोई भौचक्का रह गया। अब लोग ऑनलाइन परिचित बनाकर या ओटीपी मांग कर धोखाधड़ी करने के बजाय किसी को पूरी तरह से डिजिटल अरेस्ट कर रहे हैं। उन्हें डराया धमकाया जाता है। और एक मोटी रकम जबरन वसूली जाती है। आईए जानते हैं डिजिटल अरेस्ट क्या होता है? और आखिर डिजिटल अरेस्ट कैसे किया जाता है? साथ ही साथ जानेंगे आखिर डिजिटल अरेस्ट को लेकर सरकार की क्या नियम और प्रावधान है?
साइबर अपराध दुनिया के लिए बड़ा खतरा
देश दुनिया में साइबर अपराध बेलगाम होता जा रहा है। आये दिन हजारों या लाखों के नहीं बल्कि करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के मामले सामने आ रहे हैं। जिनमें स्टूडेंट और ऑफिस वर्कर तो शामिल है ही है। मगर साथ ही साथ सरकारी एजेंसी के बड़े अफसर, बैंक कर्मचारी और पॉलिटिकल लीडर भी साइबर क्राइम की चपेट में आ चुके हैं। साइबर अपराधी इनको भी मोटी रकम का चूना लगा चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषणों में साइबर अपराध को लेकर चिंता जताई हैं। और लोगों से सतर्क रहने की अपील की है। इन दिनों डिजिटल अरेस्ट स्कैमर्स का एक नया हथियार बना हुआ है। जिसमें निर्दोष और अनजान लोग कैसे फंस रहे हैं. आईए इसके बारे में चर्चा करते हैं।
डिजिटल अरेस्ट क्या होता है और कैसे करते हैं?
आसान शब्दों में कहे तो डिजिटल अरेस्ट एक प्रकार का साइबर क्राइम है। जिसकी शुरुआत एक सामान्य कॉल अथवा व्हाट्सएप कॉल से होती है। कोई भी धोखेबाज किसी आम इंसान को व्हाट्सएप के जरिए मैसेज या सीधे कॉल करता है। और सीबीआई, पुलिस, आरबीआई या मुंबई पुलिस जैसे बड़े डिपार्टमेंट का अधिकारी बनकर पूरे आत्मविश्वास के साथ बातचीत करता है। जब भी आम इंसान ऐसे धोखेबाज के साथ वीडियो कॉल पर बात करता है, तो यह धोखेबाज बैकग्राउंड में पुलिस स्टेशन जैसा बैकग्राउंड रखता है। वर्दी पहन कर बैठता है। और ऐसी कोई चीज नहीं होती। जिससे आम इंसान को शक हो कि उसके साथ बात करने वाला व्यक्ति धोखेबाज है।
धोखेबाज का कहना होता है कि उसके साथ कुछ बहुत बुरा हो चुका है या होने वाला है। जैसे उसके आधार कार्ड पर एक पार्सल विदेश से आया है। और उसमें गैरकानूनी वस्तु पाई गई है। अक्सर जालसाज ड्रग्स या कोई हथियार होने की जानकारी देता है। जिसका नाम सुनते ही आम इंसान डर जाता है। और उसकी बातों में आ जाता है।
अब आम इंसान के पास धोखेबाज की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। वह अपनी गिरफ्तारी रुकवाने के लिए उसकी सारी बातें मानता है। जिसके चलते उसे एक मोटी रकम स्कैमर को देनी होती है। और कई घंटे तक वीडियो कॉल में लाइव रहते हुए अपना डिजिटल अरेस्ट देना पड़ता है।
स्कैमर का कहना होता है कि अगर उसने (पीड़ित ने) कोई भी बात अपने परिचित या दोस्तों को बताई तो अच्छा नहीं होगा। कुछ इस तरीके से डरा धमकाकर उससे पैसे ऐंठ लिए जाते हैं। और साथ ही उसे कई घंटे कैमरे के सामने बैठे रहना पड़ता है। इस तरीके की घटनाएं देश में कई हो चुकी है। जिसके बाद पुलिस भी सतर्क हो गई है। पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा गाइडलाइन जारी की गई है। आईए उनके बारे में भी जानकारी ले लेते हैं।
डिजिटल अरेस्ट का जाल ऐसे बुना जाता है
- अनजान या विदेशी नंबर से व्हाट्सएप वीडियो कॉल की जाती है।
- ड्रग या किसी बड़े अपराध में शामिल होने की जानकारी देकर गिरफ्तारी की संभावना बताई जाती है।
- डरा धमकाकर वीडियो कॉल पर बने रहने का दबाव बनाया जाता है।
- ड्रग, मनी लॉन्ड्रिंग, और अन्य कई संवेदनशील अपराधों में लिप्त पाए जाने का आरोप लगाया जाता है। ताकि पीड़ित ज्यादा डर जाए और बातों में आ जाए।
- किसी को भी इस बारे में न बताने की धमकी दी जाती है। ताकि परिवार और दोस्तों की मदद ना मिल सके।
- यहां तक आते-आते पीड़ित को लगने लगता है कि उसके साथ ऑनलाइन पूछताछ की जा रही है और पुलिस खुद उसकी मदद करना चाहती है।
- अब केस को बंद करने के बदले और उसकी गिरफ्तारी रोकने के लिए उससे मोटी रकम की डिमांड की जाती है।
क्या सच में पुलिस डिजिटल अरेस्ट करती है?
जानकारी के लिए बता दे किसी भी डिपार्टमेंट द्वारा डिजिटल अरेस्ट करने का कोई विशेष कानून नहीं है। ना ही डिपार्टमेंट वाले किसी व्यक्ति को सोशल मीडिया के जरिए संपर्क करके पूछताछ करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार द्वारा ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया गया। जिसके आधार पर किसी भी व्यक्ति को डिजिटल अरेस्ट किया जा सकें। किसी भी व्यक्ति को अरेस्ट करने की जरूरत होने पर पुलिस वारंट के साथ उसे सीधे रूप से गिरफ्तार करने जाती है।
- कोई भी अधिकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए पीड़ित या आरोपी के साथ संपर्क नहीं करता।
- कोई भी अधिकारी आरोपी/पीड़ित को अपने मोबाइल में ऐप डाउनलोड करने के लिए नहीं कहता।
- FIR की कॉपी, गिरफ्तारी वारंट या पहचान पत्र जैसी कोई भी जानकारी ऑनलाइन साझा नहीं की जा सकती।
- वॉइस कॉल या वीडियो कॉल पर पूछताछ नहीं की जाती। जरूरत पड़ने पर थाने बुला लिया जाता है।
- पुलिस कभी भी वकील, दोस्तों या परिवार वालों से बातचित करने के लिए नहीं रोक सकती है।
ऑनलाइन धोखाधड़ी होने पर क्या करें
पिछले कुछ सालों में सिर्फ डिजिटल अरेस्टिंग के लगभग 92,334 से भी ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं। जिनके दौरान लगभग 2,140 करोड़ से भी ज्यादा की लोगों के साथ धोखाधड़ी हुई है। ऑनलाइन किसी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर आप सरकार के पोर्टल साइबर क्राइम डॉट गवर्नमेंट डॉट इन पर अथवा चक्षु पोर्टल पर जाकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
FAQ-
डिजिटल अरेस्ट क्या है?
डिजिटल अरेस्ट एक प्रकार का साइबर स्कैम है। जिसमें व्यक्ति के साथ पैसे लूटने की कोशिश की जाती है। और उसे कई घंटे तक के कैमरे के सामने बिठाये रखते हैं।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बच सकते हैं?
डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए अनजान नंबर से आए कॉल को रिसीव करने से बचे। अपनी निजी जानकारी शेयर ना करें। किसी भी प्रकार की कानूनी/अपराधी घटना के आरोप में परिचितों और लॉयर से खुलकर बातचीत करें।
क्या पुलिस डिजिटल अरेस्ट कर सकती है?
किसी भी प्रकार के अपराध में गिरफ्तारी करने के लिए पुलिस सीधे रूप से ही गिरफ्तार करती है। डिजिटल अरेस्ट करने का कोई नियम नहीं है।
ऑनलाइन स्कैन के पैसे वापस रिकवर कैसे करें?
ऑनलाइन हुई धोखाधड़ी के वित्तीय नुकसान को रिकवर करना संभव है। हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल हो सकती है। इसके लिए साइबर क्राइम पोर्टल पर शिकायत दर्ज करें।